चाय के सिलसिले - अंकित दीक्षित
मैंने अभी तक के अपने इस जीवन में कुछ गिनती के लोगों के साथ चाय बनाई होगी , हां – मैं उन्हें उंगली पर गिन सकता हूं , चाय के लिए भगोनी को ढूंढने से लेकर गैस पर उसके बनने तक के बहुत से चरणों में कुछ आनंदमय हंसी ठिठौली वाले किस्से ठहरे हुए है , मैं किसी एक खास पल को यहां नहीं लिख रहा जिससे की कोई बाकी जुड़े पल तुलना के लिए सामने आने लगेंगे , पर जहां तक ये लेख पहुंचे तो उस तक इस बात का मर्म भी पहुंच जाए की चाय हम पीते बहुत के साथ है , पर साथ में चाय बनाना और फिर साथ में पीना ये सीमित होता है बहुत हद तक शायद जिसे आप रोक सकते है खुद के साथ और उन्हें याद कर के सहसा ही मुस्कुरा सकते है उन किस्सों के अपने और उस साथ वाले के जीवन के उस ठहराव से , विश्वास जीतना गहरा होता है उसी की पहचान है चाय का अच्छा होना और ये हम सभी मानते भी हैं , मैं आपको चाय के रास्ते शायद बताना चाहता हूं कि एक लम्हा है जो जिया है और एक लम्हा है जिसको जीना है पर इन दोनो में नही करना तो सिर्फ तुलना , फिर कोई चाय में अदरक रस हो या फिर सादा सोड़ा।
- अंकित दीक्षित
शोधार्थी (भूगोल विभाग)
शिंदे की छावनी, लश्कर , ग्वालियर – मध्य प्रदेश
9424600078
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