तुम लिखना इस बार... - अंकित दीक्षित
तुम लिखोगी अबकी बार तो मैं चाहूंगा कि तुम वेदना लिखो,
मैं भी परिचित हो पाऊंगा की द्वंद तुम में कितना बिखरा है,
बचपन में सीखा है किसी को प्रेम में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान होते हुए,
दूर समुद्र में पुल साधते हुए,
मैं चाहूंगा मां सिया का समर्पण भी लेखनी में आए,
खुली आंखों के से सभी स्वप्न सुनहरे आंसुओ के साथ टहरे हुए
आंखों से न गिरने की काबिलियत का गुण भी कोई समझाए,
तो लिखना तुम अबकी बार वेदना को
जिससे जरूरी हो की हम जान पाए दोनों के हिस्से के प्रेम समर्पण को
सीख पाए वेदना को
सही सही शब्दों के साथ
जो लिखने में सामने लाएगा वास्तविक संवेदना के गहरे विश्वास को,
और ये सब जरूरी भी तो बहुत है जानना कि कैसे हुआ सिंधु,
वैदिक की पूजनीय विदुषियों से आज की नारी तक का सफर ...
तुम लिख देना लाल आंखों के साथ
भारी मन के घुटन वाले पानी को गले से उतार कर
शाम का खाना बनाने वाली उस ममत्व की प्रेरणा को भी
जिसने वेदना के अर्थों को नए जीवन में कैसे पिरोया होगा
खुशी के बीजों को जहां बहुत तनाव के बीच स्वादिष्ट कोरे ने जीभ को दी थी अविस्मित ना होने वाली स्मृति,
तो तुम लिखना अबकी बार वेदना पर,
मैं खुद पढूंगा एक बैठक में उसको पूरे विश्वास के साथ ...
- अंकित दीक्षित
शोधार्थी (भूगोल विभाग)
शिंदे की छावनी, लश्कर , ग्वालियर – मध्य प्रदेश
9424600078
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