नारी शक्ति को समर्पित "रचना पर्व"
नारी शक्ति को समर्पित "रचना पर्व"
"नारी" - डॉ रामचन्द्र स्वामी अध्यापक
मुश्किल लहरों में अकेली खड़ी
जीवन पथ पर वो बहुत है लडी़
पीड़ा पर अपनी सहज़ जो रही
अपनों की पीड़ा को सह ना सकी
पनपने मिली ना जिसको जमीन
उर्वरा सबके लिये वो बनती रही
जननी है वो साँसे सींचती रही
स्वं के लिये संघर्ष वो करती रही
सोचती कभी तोड़़ दे बंधन सभी
पर ममता से सदा ही वो बँधी रही
सुख दूजों की हँसी में पाती रही
टूट कर फिर सदा ही जुड़ती रही
छोटे से अपने घोंसले के लिये
सारी दुनिया के सामने अड़ती रही
मरहम बन जख्मों को भरती रही
जख्म अपने सभी से छुपाती रही
टूटेने से सबको बचाती रही
बिखरे आँसू तकिये पे बहाती रही
अग्निपथ पर परीक्षा देती रही
अपनों को आंधियो से बचाती रही
आशियाने में सपने पिरोति रही
माला सपनों की वो बुनती रही
हवन होना भी मंजूर करती रही
समिधा की लकड़ी भी बनती रही
बच्चों की ख़ुशी पर कुर्बान होती रही
हौंसला बन कर उड़ान देती रही
माँगे जो दो पल उधार खुद के लिये
जाने क्यों वो सबको खटकती रही
गलतियों को नजर अंदाज कर
छोटी सी गलती पे निशाना बनती रही
कितनी ही लकीरों से तय उसकी सीमा रही
फिर भी हारी नहीं आसमान छूती रही
- डॉ रामचन्द्र स्वामी अध्यापक
शिक्षा विभाग बीकानेर राजस्थान
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