प्रा. जितेंद्र सुदाम थोरात - प्यार का बसंत (कविता)
प्रा. जितेंद्र सुदाम थोरात - प्यार का बसंत (कविता)
प्यार का बसंत आया बसंत प्रेम का,
प्रेम की मिली सौगात।
सूरज की किरणें सोना बरसाएँ,
फूलों की खुशबू दिल तक जाएँ।
कोयल की मीठी बानी,
दिल में गुनगुनाये मधुर गीत।
हवा भी छूकर कहती है,
प्रेम बिना जीवन अधूरा।
आसमान नीला, धूप बड़ी सुहानी,
मन में उठी प्रीत की कहानी।
बातों में मिठास,
दिलों में उठा एहसास।
बसंत ने दिया मिलन का साथ।
चलो बहें इस प्रेम बहार में,
महकाएँ हर दिल संसार में।
जहाँ हो प्यार, वहीं बसंत,
जहाँ स्नेह, वहीं आनंद अनंत।
- प्रा. जितेंद्र सुदाम थोरात
अस्वीकरण (Disclaimer): इस लेख/कविता/रचना में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं और उनकी व्यक्तिगत दृष्टि को दर्शाते हैं। ये विचार स्मिता नागरी लिपि साहित्य संगम/शोध निरंजना के संपादक अथवा संपादकीय मंडल के सदस्यों या उनके विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते।